Tatya Tope death anniversary: फांसी से पहले की अंतिम लड़ाई! कैसे तात्या टोपे ने अंग्रेजों को आखिरी सांस तक छकाया

Tatya Tope death anniversary: तात्या टोपे 1857 की क्रांति के सबसे बड़े योद्धाओं में से एक थे। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को कई बार हिला कर रख दिया था। अंग्रेज उनसे इतना डर गए थे कि पकड़े जाने के सिर्फ 11 दिन बाद ही 18 अप्रैल 1859 को उन्हें फांसी दे दी गई थी।
तात्या टोपे का प्रारंभिक जीवन
तात्या टोपे का असली नाम रामचंद्र पांडुरंग टोपे था। वह 1814 में महाराष्ट्र के नासिक जिले के येओला में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। उनके पिता पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में एक अहम अधिकारी थे। उनका बचपन कानपुर के बिठूर में बीता जहां उन्हें मराठी संस्कृत और युद्धकला की शिक्षा मिली थी।
1857 की क्रांति में योगदान
तात्या टोपे पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहेब के घनिष्ठ मित्र और सहयोगी थे। उन्होंने नाना साहेब से ही गुरिल्ला युद्ध की तकनीक सीखी थी। इसी तकनीक के दम पर उन्होंने 1857 की पहली स्वतंत्रता संग्राम को जीवित बनाए रखा। जब बाकी विद्रोह दबा दिए गए तब भी तात्या टोपे जंगलों में छिपकर लड़ते रहे और अंग्रेजों को परेशान करते रहे।
गुरिल्ला युद्ध में माहिर योद्धा
तात्या टोपे ने कानपुर में अंग्रेजी सेना के खिलाफ नेतृत्व किया और कई बार उन्हें हराया। उनकी रणनीति इतनी तेज थी कि वह जगह बदलते रहते और अंग्रेजों को धोखा देते रहते थे। उन्होंने झांसी और ग्वालियर में रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर युद्ध लड़ा और ग्वालियर को भी कुछ समय के लिए अपने कब्जे में लिया जो उनकी सबसे बड़ी विजय मानी जाती है।
विश्वासघात और बलिदान
अप्रैल 1859 में उनके अपने साथी मान सिंह ने विश्वासघात कर दिया और उनकी जानकारी अंग्रेजों को दे दी। इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें मध्य प्रदेश के शिवपुरी में पकड़ लिया। 18 अप्रैल 1859 को बिना लंबी सुनवाई के उन्हें फांसी दे दी गई। हालांकि कुछ लोककथाओं के अनुसार वे बच निकले थे लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेजों में उनकी मृत्यु फांसी से मानी जाती है।