रेयर अर्थ में भारत की ताकत, फिर भी चीन से क्यों खरीदनी पड़ती है सप्लाई जानिए पूरा कारण

भारत का दुर्लभ पृथ्वी खनिजों से जुड़ा इतिहास 1950 से शुरू होता है, जब सरकार ने इंडियन रेर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) की स्थापना की। उस वक्त दुनिया को इन खनिजों की महत्ता नहीं पता थी। शुरुआत में मांग कम होने की वजह से IREL ने बीच सैंड से अन्य खनिज निकालने पर ध्यान दिया। साथ ही सख्त नियम और लंबी अनुमति प्रक्रियाओं ने इस क्षेत्र की प्रगति में बाधा डाली। इस कारण भारत आज भी अपनी दुर्लभ पृथ्वी खनिजों की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पा रहा।
चीन से क्यों पिछड़ा भारत?
भारत में दुर्लभ पृथ्वी खनिज ज्यादातर मोनाजाइट सैंड में पाए जाते हैं, जिसमें रेडियोधर्मी तत्व थोरियम भी होता है। इसे परमाणु सामग्री माना जाता है, इसलिए सरकार इस पर कड़ी निगरानी रखती है। इस वजह से निजी कंपनियों की भागीदारी सीमित है। IREL ही एकमात्र बड़ी कंपनी है जो नियोडिमियम-प्रैसियोडिमियम ऑक्साइड का उत्पादन करती है, जो इलेक्ट्रिक मोटर्स में इस्तेमाल होने वाले स्थायी चुम्बकों के लिए जरूरी है। लेकिन भारत की वार्षिक उत्पादन क्षमता लगभग 3,000 टन है, जबकि चीन अकेले 2,70,000 टन उत्पादन करता है।

चीन की पकड़ मजबूत क्यों?
चीन ने इस क्षेत्र में दशकों पहले निवेश शुरू कर दिया था और आज वह विश्व के 70% से अधिक दुर्लभ पृथ्वी खनिज उत्पादन पर नियंत्रण रखता है। इसके पीछे उनकी उन्नत तकनीक, मजबूत संसाधन और स्थिर नीतियां हैं। जबकि भारत के पास भंडार तो है, लेकिन तकनीकी और नीति दोनों में कमजोरी के कारण वह चीन की तुलना में पिछड़ गया है।
IREL की चुनौतियां और सरकार की उम्मीदें
IREL का विजाग (आंध्र प्रदेश) में आधुनिक संयंत्र है, जो देश में स्थायी चुम्बक बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। फिर भी पिछले एक साल से कंपनी के पास अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक नहीं हैं। इसके बावजूद वित्त वर्ष 2024 में कंपनी ने ₹1,012 करोड़ का लाभ कमाया। सरकार ने इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए ₹7,300 करोड़ की योजना भी शुरू की है, जिसका उद्देश्य दुर्लभ पृथ्वी प्रसंस्करण इकाइयों और सप्लाई चेन का विकास है।
नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन से बड़े बदलाव की उम्मीद
सरकार ने अप्रैल 2025 में नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) लॉन्च किया है, जिसके तहत देश में 1,200 नए अन्वेषण प्रोजेक्ट्स शुरू होंगे। राजस्थान के सिरोही और भीलवाड़ा में नियोडिमियम जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की खोज भी शुरू हो चुकी है। इस मिशन का लक्ष्य न केवल घरेलू उत्पादन बढ़ाना है बल्कि विदेशों में खनन संपत्तियां भी अधिग्रहित करना है, ताकि भारत अपनी दुर्लभ पृथ्वी आवश्यकताओं में आत्मनिर्भर हो सके।
