US Fed का बड़ा फैसला: 10 महीने बाद ब्याज दरों में कटौती, जानिए भारतीय शेयर बाजार पर असर

अमेरिकी फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) ने बुधवार को हुई फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) की बैठक में बड़ा फैसला लिया। बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई को ध्यान में रखते हुए, फेडरल रिजर्व ने 25 बेसिस पॉइंट (0.25%) की दर कटौती की घोषणा की। इस कटौती के बाद अब अमेरिका की प्रमुख ब्याज दरें 4.25%-4.50% से घटकर 4.00%-4.25% पर आ गई हैं। यह इस साल की पहली कटौती है, जबकि पिछली बार ब्याज दरों में कटौती दिसंबर 2024 में की गई थी।
फेडरल रिजर्व का बयान और लक्ष्य
फेडरल रिजर्व ने अपने बयान में कहा, “हाल के संकेतक बताते हैं कि साल की पहली छमाही में आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार धीमी हुई है। रोजगार वृद्धि में गिरावट आई है और बेरोजगारी दर बढ़ी है, हालांकि यह अभी भी अपेक्षाकृत कम है। वहीं, महंगाई लगातार ऊँचे स्तर पर बनी हुई है।” समिति का लक्ष्य लंबे समय में अधिकतम रोजगार और 2% महंगाई दर को बनाए रखना है। साथ ही, फेड ने यह भी स्पष्ट किया कि आर्थिक परिदृश्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है और रोजगार से जुड़े जोखिमों में इजाफा हुआ है।
अमेरिका में बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई
अमेरिका में बेरोजगारी और महंगाई, दोनों ही चुनौती बने हुए हैं। अमेरिकी श्रम विभाग (US Department of Labor) के अनुसार, अगस्त 2025 में बेरोजगारी दर 4.3% तक पहुँच गई, जो 2021 के बाद सबसे ऊँचा स्तर है। वहीं खुदरा महंगाई (Retail Inflation) अगस्त में सालाना आधार पर बढ़कर 2.9% हो गई, जो जनवरी के बाद सबसे अधिक है। महंगाई मुख्यतः पेट्रोल, किराना सामान, होटल, हवाई किराया, कपड़े और पुरानी गाड़ियों के दाम बढ़ने से हुई। जुलाई में यह आंकड़ा 2.7% था। इन आर्थिक दबावों को देखते हुए फेडरल रिजर्व ने दर कटौती का रास्ता चुना।
भारत में आरबीआई की दर कटौती
अमेरिका ही नहीं, भारत में भी इस साल रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने लगातार रेपो रेट में 1% की कमी की है। फरवरी में रेपो रेट को 0.25% घटाकर 6.50% से 6.25% किया गया। इसके बाद अप्रैल में फिर 0.25% की कटौती कर इसे 6.00% किया गया। जून में आरबीआई ने सीधे 0.50% की कटौती कर दर को 5.50% पर ला दिया। अगस्त की MPC बैठक में रेपो रेट को स्थिर रखा गया था। अब अक्टूबर की MPC बैठक में फिर से नए फैसले की उम्मीद की जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी फेड के फैसले का असर भारतीय अर्थव्यवस्था और पूंजी बाजार पर भी देखने को मिल सकता है।