क्या BJP को मिल गई नई ‘शीला दीक्षित’, कितनी अलग होगी रेखा सरकार?

दिल्ली की सियासत में बीजेपी दूसरी बार सत्ता में आई है. मुख्यमंत्री के तौर पर रेखा गुप्ता के रूप में दिल्ली को एक बार फिर महिला नेतृत्व हासिल हुआ है. रेखा दिल्ली की ओवरऑल चौथी और लगातार दूसरी महिला मुख्यमंत्री बनी हैं. दिल्ली को पहली महिला सीएम देने का श्रेय बीजेपी को ही जाता है, जब पार्टी ने अक्टूबर 1998 में साहिब सिंह वर्मा की जगह सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया था. सुषमा स्वराज को सीएम के तौर पर बेहद कम वक्त मिला और आखिरकार शीला दीक्षित ने उनसे दिल्ली में फुल टर्म सीएम बनने का मौका छीन लिया था. अब फिर से बीजेपी ने रेखा गुप्ता के रूप में महिला सीएम दिया है.
बीजेपी 27 साल के बाद दिल्ली की सत्ता में लौटी है तो एबीवीपी से सियासी पारी शुरू करने वाली रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया है. रेखा गुप्ता ने अपने छह मंत्रियों के साथ रामलीला मैदान में शपथ ली. डीयू की छात्र राजनीति से सीएम तक का सफर तय करने वाली रेखा गुप्ता के रूप में बीजेपी को दिल्ली में क्या नई शीला मिल गई है? ऐसे में दिल्ली की रेखा सरकार कैसे सुषमा स्वराज और आतिशी सरकार से अलग है.
सुषमा स्वराज से कैसे अलग रेखा सरकार?
रेखा गुप्ता की अगुवाई में बनी बीजेपी सरकार 1998 की सुषमा स्वराज से काफी अलग है. दिल्ली में 1993 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे, बीजेपी जीतकर सत्ता में आई तो मदनलाल खुराना को सीएम बनाया गया. इसके बाद जैन डायरी में नाम आने के चलते खुराना ने इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह साहिब सिंह वर्मा सीएम बने थे. हालांकि, बीजेपी में अंदरूनी खींचतान के चलते साहिब सिंह वर्मा को इस्तीफा देना पड़ा और उनकी जगह पर सुषमा स्वराज 12 अक्टूबर 1998 को दिल्ली की सीएम बनी. इस तरह सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला सीएम बनी.
सुषमा स्वराज ने सत्ता की बागडोर संभाली ली, लेकिन 1998 का चुनाव सिर पर था. इस तरह सुषमा स्वराज को सीएम के तौर पर सिर्फ 52 दिन ही काम करने के लिए मिले थे. इतने कम समय में खुद को साबित करना एक बड़ा चैलेंज था. दिल्ली विधानसभा चुनाव सामने था. बीजेपी को मजबूत करना था, दिल्ली सरकार के पांच साल में तीन सीएम बनाए जाने के चलते सवाल खड़े हो रहे थे. इसके अलावा प्याज की महंगाई ने बीजेपी की टेंशन बढ़ी थी.
कांग्रेस ने शीला दीक्षित को आगे करके सुषमा स्वराज के फुल टर्म सीएम बनने के अरमानों पर पानी फेर दिया. 1998 के चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
सुषमा की तरह आतिशी भी ‘एक्सीडेंटल’ सीएम
सुषमा स्वराज की तरह आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी भी दिल्ली की एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री बनी. दिल्ली के कथित शराब घोटाला में अरविंद केजरीवाल जेल गए थे. जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद केजरीवाल ने सीएम पद से 17 सितंबर 2024 को इस्तीफा दे दिया था. केजरीवाल ने अपनी सियासी विरासत आतिशी को सौंपी और उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बना दिया. आतिशी ने सत्ता की बागडोर को संभाला, लेकिन उनके सामने भी 2025 का विधानसभा चुनाव सिर पर था. शराब घोटाले के आरोपों ने सरकार की छवि को धूमिल कर दिया था.
आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनी. 2025 का दिल्ली विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी ने आतिशी की अगुवाई में लड़ा, लेकिन करारी शिकस्त खानी पड़ी. सीएम के तौर पर आतिशी को सिर्फ 152 दिन ही काम करने को मिले, जिसके चलते आतिशी खुद को साबित नहीं कर सकी. इसके अलावा आतिशी अपनी छवि को एक सीएम के तौर पर भी स्थापित करने में फेल रही, क्योंकि वो खुद भी कहती रही कि वो दिल्ली की टेम्परेरी सीएम हैं. 2025 में अरविंद केजरीवाल सीएम बनेंगे. इसके चलते दिल्ली के लोगों का विश्वास नहीं जीत सकीं और आम आदमी पार्टी को चुनाव में शिकस्त खानी पड़ी.
सुषमा और आतिशी से कैसे अलग रेखा सरकार
सुषमा स्वराज और आतिशी दोनों ही दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सत्ता की बागडोर संभाली थी. जबकि सीएम बनी रेखा गुप्ता के सामने पूरा पांच साल का कार्यकाल पड़ा हुआ है. रेखा गुप्ता उसी तरह से सीएम बनी हैं, जिस तरह से 1998 में कांग्रेस की सत्ता में आने पर शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनी थी. इसके चलते ही सुषमा-आतिशी से काफी अलग रेखा गुप्ता का मामला है. रेखा गुप्ता को दिल्ली की सत्ता ऐसे समय मिली है, जब केंद्र की सत्ता पर भी बीजेपी काबिज है. इस तरह दिल्ली में डबल इंजन की सरकार होगी, जिसके चलते केंद्र और उपराज्यपाल के साथ टकराव की संभावना भी कम होगी.
शीला दीक्षित के पहले कार्यकाल को छोड़कर बाकी दोनों कार्यकाल के दौरान दिल्ली और केंद्र दोनों ही जगह कांग्रेस की सरकार थी. इसके चलते केंद्र के साथ बहुत ज्यादा सियासी टकराव वाली स्थिति नहीं बनी. शीला दीक्षित ने बहुत ही आसानी से सरकार चलाई जबकि केजरीवाल और आतिशी को सत्ता में रहते हुए केंद्र के साथ दो-दो हाथ करते रहना पड़ा. रेखा गुप्ता के साथ ऐसी स्थिति नहीं है. रेखा गुप्ता के पीछे पूरी बीजेपी पार्टी खड़ी है. खासकर सीनियर लीडरशिप का भरोसा उन पर है.
केंद्र में बीजेपी की सरकार है. उन्हें हर चुनौती का मुकाबला अकेले नहीं करना पड़ेगा, जहां भी जरूरत होगी, पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनकी मदद करेगा. दिल्ली एक ऐसा राज्य है, जहां आधा काम वैसे ही केंद्र सरकार के पास है, अब पूरी दिल्ली उनके पास होगी. काम में कोई रुकावट नहीं आएगी. दिल्ली एक सरप्लस बजट वाला स्टेट है. ऐसे में बजट की दिक्कत भी नहीं होगी.शीला की तरह ही उन्हें भी केंद्र के साथ पूरा सहयोग मिलता रहेगा और सियासी संतुलन बनाकर दिल्ली की सरकार चलाती रह सकती हैं.