राज्य की असाधारण शक्ति पर Supreme Court की नज़र, हिरासत के गलत इस्तेमाल पर जताई चिंता

Supreme Court ने कहा कि प्रिवेंटिव डिटेंशन यानी एहतियाती हिरासत राज्य को दिया गया एक असाधारण अधिकार है जिसे बहुत सोच-समझकर और सीमित परिस्थितियों में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अदालत ने एक मनीलेंडर को हिरासत में लेने के जिला मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया है।
जमानत की शर्तों के उल्लंघन पर कोर्ट की प्रतिक्रिया
अदालत ने पूछा कि अगर आरोपी ने जमानत की शर्तों का उल्लंघन किया था तो राज्य ने संबंधित अदालत में जाकर उसकी जमानत रद्द करवाने की कोशिश क्यों नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना ही उचित होता ना कि सीधे हिरासत का आदेश देना।
केरल हाई कोर्ट का आदेश भी खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में केरल हाई कोर्ट द्वारा सितंबर 2024 में दिए गए उस निर्णय को भी खारिज कर दिया जिसमें जिला मजिस्ट्रेट के हिरासत आदेश को सही बताया गया था। शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि इस तरह की कार्रवाई संविधान के तहत प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग है।
असामान्य शक्ति का सामान्य उपयोग नहीं हो सकता
अदालत ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 22(3)(b) के तहत मिली हिरासत की शक्ति को सामान्य मामलों में नहीं लागू किया जा सकता। किसी व्यक्ति को भविष्य में अपराध करने की आशंका के आधार पर हिरासत में रखना उसकी स्वतंत्रता का उल्लंघन है और यह केवल विशेष मामलों में ही जायज ठहराया जा सकता है।
सभी तर्क खारिज और आरोपी को राहत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट ने जो परिस्थितियां बताई हैं वे राज्य सरकार को जमानत रद्द करवाने के लिए अदालत जाने की वजह जरूर दे सकती हैं लेकिन एहतियाती हिरासत का कारण नहीं बन सकतीं। अदालत ने आरोपी की रिहाई का आदेश पहले ही 10 दिसंबर 2024 को दिया था क्योंकि अधिकतम हिरासत की अवधि समाप्त हो गई थी।