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चार साल में सबसे धीमी आर्थिक रफ्तार, निर्मला सीतारमण ने बताए सरकार के अगली चाल के संकेत

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को कहा कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की आर्थिक विकास दर को बनाए रखना और देश के सतत विकास के लिए सार्वजनिक पूंजीगत व्यय को प्रोत्साहित करना उनकी प्रमुख प्राथमिकताओं में शामिल है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश की आर्थिक विकास दर वित्त वर्ष 2024-25 में 6.5 प्रतिशत दर्ज की गई है, जो पिछले चार वर्षों में सबसे कम है। पिछले वित्तीय वर्ष 2023-24 में विकास दर 9.2 प्रतिशत थी, यानी इसमें उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। ऐसे में वित्त मंत्री का यह बयान न केवल नीतिगत दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि देश की आर्थिक दिशा को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।

सीतारमण ने साफ कहा कि देश की गति बनाए रखना ही सबसे बड़ी प्राथमिकता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि सतत विकास सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, इसका सीधा संबंध रोजगार, निवेश और निर्माण से होता है। एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वैश्विक मंच पर भारत की प्रासंगिकता बनाए रखना, लीडरशिप पोजिशन में रहना और ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज़ को दोबारा परिभाषित करना सरकार के प्रमुख लक्ष्य हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को वैश्विक स्तर पर एक जिम्मेदार और अग्रणी देश के रूप में देखा जाना चाहिए।

जीडीपी अनुमान में गिरावट, लेकिन आत्मविश्वास बरकरार

भारत सरकार द्वारा जारी आर्थिक सर्वेक्षण में वित्त वर्ष 2025-26 के लिए जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 6.3% से 6.8% के बीच लगाया गया है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए अपने पूर्वानुमान को 6.7% से घटाकर 6.5% कर दिया है। यह बदलाव वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक तनावों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। इसके बावजूद सरकार का आत्मविश्वास स्पष्ट है कि भारत अपने विकास पथ पर मजबूती से आगे बढ़ेगा।

निर्मला सीतारमण का यह भी कहना है कि आने वाले समय में भारत को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाते हुए, वैश्विक चुनौतियों का डटकर सामना करना है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि विकास का अर्थ केवल जीडीपी ग्रोथ नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर आम आदमी के जीवन, रोजगार और जीवनशैली पर भी पड़ता है। ऐसे में आर्थिक योजनाएं इस प्रकार बनानी होंगी जो समावेशी हों और दीर्घकालिक विकास को प्राथमिकता दें।

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सार्वजनिक पूंजीगत व्यय से बनेगा विकास का मजबूत आधार

वित्त मंत्री ने अपने भाषण में स्पष्ट किया कि सार्वजनिक पूंजीगत व्यय (Public Capital Expenditure) सतत विकास के लिए रीढ़ की हड्डी है। उन्होंने बताया कि जब सरकार सड़क, रेलवे, बंदरगाह, ऊर्जा और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में पूंजी निवेश करती है, तो उसका सीधा प्रभाव रोजगार के अवसरों पर पड़ता है। निर्माण गतिविधियां बढ़ती हैं, जिससे निजी निवेश को भी प्रेरणा मिलती है और संपूर्ण अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा का संचार होता है।

उन्होंने आगे कहा कि राज्यों के बीच निवेश आकर्षित करने की होड़ एक सकारात्मक संकेत है। इससे न केवल निवेश के लिए एक प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण बनता है, बल्कि राज्यों को भी अपनी नीतियों को सुधारने की प्रेरणा मिलती है। इसके अतिरिक्त, भारत की एफडीआई (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) नीति को और आकर्षक बनाया जा रहा है, जिससे वैश्विक निवेशक भारतीय बाजार को प्राथमिकता दें। इस दिशा में सरकार ने कई सुधार किए हैं और आगे भी यह प्रक्रिया जारी रहेगी।

द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर रहेगा फोकस

बात व्यापार की हो तो निर्मला सीतारमण ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत का ध्यान अब बहुपक्षीय (multilateral) व्यापार समझौतों से ज्यादा द्विपक्षीय (bilateral) व्यापार समझौतों पर रहेगा। उन्होंने बताया कि पिछले चार-पांच वर्षों में भारत ने ऑस्ट्रेलिया, यूएई और यूनाइटेड किंगडम के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते किए हैं। इसके अलावा अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ बातचीत अच्छी प्रगति पर है और जल्द ही कुछ ठोस परिणाम सामने आ सकते हैं।

सीतारमण का मानना है कि द्विपक्षीय समझौतों से भारत को अपने हितों के अनुरूप नियम तय करने का अवसर मिलता है, जिससे घरेलू उद्योगों की सुरक्षा और निर्यात को बढ़ावा देना आसान होता है। इससे व्यापार घाटा कम करने में भी मदद मिलती है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि वैश्विक मंच पर भारत की रणनीति अब “भारत फर्स्ट” की होगी, जिसमें देश के दीर्घकालिक हितों को प्राथमिकता दी जाएगी।

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