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मालेगांव केस में बरी हुए सातों आरोपी, पूर्व अधिकारी बोले- मुझे RSS प्रमुख को गिरफ़्तार करने को कहा गया

महाराष्ट्र के मालेगांव में 2008 में हुए बम धमाके के मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया। इस केस में आरोपी बनाए गए साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित सहित सातों आरोपियों को बरी कर दिया गया है। करीब 17 सालों बाद आए इस फैसले ने एक बार फिर से देशभर में चर्चा छेड़ दी है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष सबूतों के आधार पर आरोप साबित नहीं कर पाया। इसी बीच महाराष्ट्र एटीएस (ATS) के पूर्व पुलिस अधिकारी मेहबूब मुझावर ने एक सनसनीखेज खुलासा किया है, जिसने मामले को और भी पेचीदा बना दिया है।

RSS प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का मिला था आदेश

पूर्व इंस्पेक्टर मेहबूब मुझावर ने कोर्ट के फैसले के बाद मीडिया से बातचीत में बड़ा दावा किया कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश मिला था। मुझावर ने कहा कि यह आदेश इसलिए दिया गया था ताकि ‘भगवा आतंकवाद’ (सैफ्रन टेररिज्म) का नैरेटिव स्थापित किया जा सके। उन्होंने कहा कि उस समय राम कासलांगरा, संदीप डांगे, दिलीप पाटीदार जैसे लोगों के साथ-साथ मोहन भागवत के खिलाफ भी गोपनीय आदेश दिए गए थे। मुझावर के अनुसार, ये आदेश न तो तार्किक थे और न ही कानूनन सही थे, इसलिए उन्होंने इनका पालन नहीं किया।

मालेगांव केस में बरी हुए सातों आरोपी, पूर्व अधिकारी बोले- मुझे RSS प्रमुख को गिरफ़्तार करने को कहा गया

फर्जी जांच और फर्जी अफसरों की पोल खुली – मुझावर

मुझावर ने सोलापुर में मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि कोर्ट के इस फैसले ने महाराष्ट्र ATS की ‘फर्जी जांच’ और ‘राजनीतिक मंशा’ को बेनकाब कर दिया है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से आरोपियों को झूठे केस में फंसाया गया और पूरे मामले को एक खास दिशा में मोड़ा गया, वह कानून की मर्यादा और सच्चाई दोनों के खिलाफ था। मुझावर ने कहा कि अदालत के फैसले से यह सिद्ध हो गया है कि आतंकवाद के नाम पर राजनीतिक मकसद साधे जा रहे थे। उन्होंने एटीएस के अधिकारियों पर सवाल उठाते हुए कहा, “फर्जी अफसरों की फर्जी जांच अब सबके सामने आ गई है।”

ऑर्डर न मानने पर दर्ज हुआ झूठा केस, 40 साल की नौकरी दांव पर लगी

पूर्व इंस्पेक्टर मुझावर ने कहा कि उन्होंने मोहन भागवत जैसे वरिष्ठ व्यक्ति को गिरफ़्तार करने का आदेश नहीं माना, क्योंकि वे जानते थे कि इस आदेश के पीछे सच्चाई नहीं है। मुझावर ने भावुक होते हुए बताया कि “मेरे द्वारा आदेश न मानने पर मुझ पर एक फर्जी मामला दर्ज कर दिया गया, जिससे मेरा 40 साल का सेवाकाल बर्बाद हो गया।” उन्होंने यह भी कहा कि भगवा आतंकवाद जैसी कोई चीज़ नहीं थी, और यह सब एक राजनीतिक स्क्रिप्ट का हिस्सा था। अब जबकि अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है, इस मामले में हुई राजनीति और जांच एजेंसियों की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं।

मालेगांव धमाके के केस में आए इस फैसले ने न केवल अभियुक्तों को राहत दी है, बल्कि यह भी उजागर किया है कि जांच एजेंसियों और राजनीतिक ताकतों ने किस तरह इस मामले को प्रभावित किया। मुझावर जैसे अधिकारियों के खुलासे यह संकेत देते हैं कि कहीं न कहीं न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिशें हुई थीं, जिन्हें अब समय और सच ने उजागर कर दिया है।

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