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Reliance Infra: हाईकोर्ट के एक फैसले ने बदल दी अनिल अंबानी की किस्मत क्या पलटेगा शेयर बाजार का रुख

Reliance Infra: 10 जून को बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड और मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण यानी एमएमआरडीए के बीच चल रहे विवाद में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि एमएमआरडीए 1169 करोड़ रुपये की मध्यस्थता राशि कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा करे। यह फैसला अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए बड़ी राहत लेकर आया है।

क्या है विवाद की असली वजह

मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड यानी एमएमओपीएल रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर और एमएमआरडीए का संयुक्त उपक्रम है। यह मुंबई की पहली मेट्रो लाइन वर्सोवा अंधेरी घाटकोपर रूट पर संचालन करती है। इसमें रिलायंस की 74 प्रतिशत हिस्सेदारी है और बाकी एमएमआरडीए के पास है। साल 2007 में हुए समझौते के तहत प्रोजेक्ट में देरी हुई और लागत बढ़ गई जिससे दोनों पक्षों में विवाद शुरू हुआ।

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एमएमओपीएल ने लगाए गंभीर आरोप

एमएमओपीएल ने एमएमआरडीए पर आरोप लगाया कि उसकी वजह से प्रोजेक्ट में काफी नुकसान हुआ है। भुगतान में देरी और वायबिलिटी गैप फंडिंग यानी वीजीएफ न मिलने से कंपनी को आर्थिक संकट झेलना पड़ा। इसके चलते एमएमओपीएल ने 2023 में मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू की। ट्रिब्यूनल ने मई 2025 तक 992 करोड़ रुपये के साथ ब्याज मिलाकर कुल 1169 करोड़ रुपये अदा करने का आदेश दिया।

एमएमआरडीए ने कोर्ट में दी चुनौती

एमएमआरडीए ने ट्रिब्यूनल के फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उसने कोर्ट से यह अपील की कि जब तक सुनवाई और अंतिम फैसला न हो जाए तब तक मध्यस्थता के आदेश पर रोक लगाई जाए। लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि बिना किसी राशि के जमा किए रोक देना कानून की भावना के खिलाफ होगा।

कोर्ट ने क्या कहा अपने फैसले में

कोर्ट ने कहा कि यदि एमएमआरडीए 15 जुलाई तक पूरा पैसा कोर्ट में जमा कर देती है तो फिलहाल के लिए ट्रिब्यूनल के आदेश पर रोक लगाई जा सकती है। लेकिन बिना पैसे जमा किए अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि मध्यस्थता प्रक्रिया को सशक्त बनाने के लिए कानून में साफ व्यवस्था की गई है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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