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भारत के वो देसी डॉग्स जिनकी बहादुरी पर बनी हैं अनगिनत दंतकथाएं – जानें कौन हैं ये योद्धा नस्लें!

भारत के इतिहास, संस्कृति और परंपरा में कुत्तों का हमेशा से एक विशेष और सम्मानित स्थान रहा है। भारतीय नस्लों के कुत्ते अपनी अद्भुत निष्ठा, साहस और कार्यकुशलता के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। चाहे राजदरबार हों या युद्धभूमि, इन कुत्तों ने हमेशा मानव और पशु के बीच के अटूट बंधन का प्रतीक प्रस्तुत किया है। भारत की समृद्ध सैन्य और सांस्कृतिक विरासत में इनका योगदान अतुलनीय रहा है। इन भारतीय नस्लों में न केवल शक्ति और सहनशक्ति का अनोखा संगम देखने को मिलता है, बल्कि ये विभिन्न जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों में आसानी से ढल जाते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की पहल: आत्मनिर्भर भारत में स्वदेशी कुत्तों की भूमिका

भारतीय नस्लों को नई पहचान देने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया। जनवरी 2018 में उन्होंने बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) के नेशनल डॉग ट्रेनिंग सेंटर, टेकनपुर (मध्य प्रदेश) का दौरा किया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने सुरक्षा बलों में भारतीय नस्लों के कुत्तों को शामिल करने और उन्हें प्रशिक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उनके इस दूरदर्शी विचार ने भारतीय नस्लों को न केवल सम्मान दिलाया, बल्कि “आत्मनिर्भर भारत” की भावना को भी मजबूत किया। आगे चलकर, 30 अगस्त 2020 को अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों से अपील की कि वे भारतीय नस्लों के कुत्तों को अपनाएं और बढ़ावा दें। यह संदेश “वोकल फॉर लोकल” की भावना से प्रेरित था, जिसने पूरे देश में आत्मगौरव और स्वदेशी चेतना की नई लहर पैदा की।

BSF में भारतीय नस्लों की एंट्री: रैंपुर और मुद्होल हाउंड की सफलता

प्रधानमंत्री की प्रेरणा से BSF ने दो प्रमुख भारतीय नस्लों—रैंपुर हाउंड और मुद्होल हाउंड—को बल में शामिल किया। रैंपुर हाउंड उत्तर प्रदेश के नवाबों द्वारा विकसित किया गया था और यह अपनी तेज़ रफ्तार, साहस और सहनशक्ति के लिए प्रसिद्ध है। वहीं मुद्होल हाउंड, जो दक्कन के पठार का मूल निवासी है, मराठा सेना में शिकार और सुरक्षा के कार्यों में प्रयुक्त होता था। राजा मलोजीराव घोरपड़े ने इस नस्ल को आगे बढ़ाया और इसे ब्रिटिश अधिकारियों के सामने “Caravan Hound” के नाम से प्रस्तुत किया। आज ये दोनों भारतीय नस्लें BSF के लिए गर्व का विषय बन चुकी हैं। टेकनपुर स्थित नेशनल डॉग ट्रेनिंग सेंटर में इन्हें न केवल प्रशिक्षित किया जा रहा है, बल्कि इनके प्रजनन पर भी जोर दिया जा रहा है। वर्तमान में देशभर के रणनीतिक और संवेदनशील इलाकों—जैसे पश्चिमी व पूर्वी सीमाओं और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों—में 150 से अधिक स्वदेशी नस्लों के कुत्ते तैनात हैं।

स्वदेशी श्वानों की सफलता: ‘रिया’ बनी देश की नई पहचान

2024 के ऑल इंडिया पुलिस ड्यूटी मीट (लखनऊ) में BSF की ‘रिया’, जो एक मुद्होल हाउंड है, ने इतिहास रच दिया। उसने ‘बेस्ट ट्रैकर ट्रेड डॉग’ और ‘डॉग ऑफ द मीट’ दोनों खिताब अपने नाम किए, विदेशी नस्लों के 116 कुत्तों को पछाड़ते हुए। यह उपलब्धि भारतीय नस्लों की उत्कृष्टता, अनुशासन और क्षमता का जीवंत प्रमाण है। हाल ही में गुजरात के एकता नगर में आयोजित राष्ट्रीय एकता दिवस परेड में भी BSF की पूरी स्वदेशी नस्लों की टुकड़ी ने हिस्सा लिया और अपनी अद्भुत क्षमताओं का प्रदर्शन किया। यह भारत के आत्मनिर्भर और गौरवशाली स्वरूप का प्रतीक है। भारतीय नस्लों के कुत्तों का प्रशिक्षण, प्रजनन और तैनाती न केवल परंपरा का पुनर्जागरण है, बल्कि यह दिखाता है कि भारत आत्मविश्वास, शक्ति और गरिमा के साथ आगे बढ़ रहा है — और इस यात्रा में हमारे भारतीय श्वान गर्व से राष्ट्रसेवा में अग्रसर हैं।

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