Kapkapiii Movie Review: डर कहां छुपा है? या कहीं है ही नहीं? ‘कंपकंपी’ देखने के बाद बस यही सवाल बाकी

Kapkapiii Movie Review: ‘कपकपी’ एक हॉरर-कॉमेडी फिल्म है जो दर्शकों में उम्मीद जगाती है लेकिन अंत में निराश करती है। यह दिवंगत निर्देशक संगीथ सिवन की आखिरी फिल्म है जिसमें श्रेयस तलपड़े तुषार कपूर और जाकिर हुसैन जैसे अनुभवी कलाकार मुख्य भूमिकाओं में हैं। फिल्म में वीजी बोर्ड भूत की परछाई रहस्य और कुछ हँसाने वाले पल जरूर हैं लेकिन इन सबका तालमेल नहीं बैठ पाया और फिल्म कमजोर बनकर रह गई।
मनु की कहानी और आत्मा की पहेली
फिल्म की कहानी मनु और उसके दोस्तों के इर्दगिर्द घूमती है जो एक आत्मा अनामिका को वीजी बोर्ड के जरिए बुला लेते हैं। शुरुआत में सब कुछ मजेदार लगता है लेकिन जल्द ही डरावनी घटनाएं शुरू हो जाती हैं। इसी बीच मनु का रहस्यमयी दोस्त कबीर उसके पास रहने आ जाता है और कहानी और उलझ जाती है। हालांकि प्लॉट दिलचस्प है लेकिन इसका प्रस्तुतीकरण बिखरा हुआ और थकाऊ लगता है।
निर्देशन में कमी और लेखन की उलझन
यह फिल्म निर्देशक संगीथ सिवन की आखिरी पेशकश है लेकिन यह उनकी कला को यादगार विदाई नहीं देती। स्क्रिप्ट में स्पष्टता की कमी है और कहानी इतने सबप्लॉट में उलझ जाती है कि मुख्य विषय धुंधला हो जाता है। रोमांटिक कॉमेडी के रीमेक को जबरन हॉरर में ढालने की कोशिश में इसकी आत्मा ही खो गई है। कई बार लगता है जैसे हर विचार को एक साथ परोस दिया गया हो।
अधूरी हंसी और अधूरा डर
फिल्म दर्शकों को हँसाना और डराना चाहती है लेकिन दोनों में ही असफल रहती है। पहला और दूसरा भाग जैसे दो अलग-अलग फिल्में हों। कई कहानियां बीच में शुरू होती हैं और फिर बिना नतीजे के खत्म हो जाती हैं। न आत्मा की कहानी समझ आती है और न किरदारों की मंशा। फिल्म कई बार उम्मीद जगाती है लेकिन हर बार वो अधूरी रह जाती है।
कलाकारों की मेहनत लेकिन कमजोर असर
श्रेयस तलपड़े ने एक बार फिर अपने अभिनय से ईमानदारी दिखाई है और कुछ दृश्यों में उनका काम प्रभावशाली रहा है। तुषार कपूर अपने डरावने किरदार में कुछ खास असर नहीं छोड़ पाए क्योंकि दर्शकों को वो हमेशा कॉमेडी में ही दिखे हैं। जाकिर हुसैन हमेशा की तरह विश्वसनीय हैं लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट उन्हें सीमित कर देती है। डिव्येंदु भट्टाचार्य की छोटी सी भूमिका थोड़ी जान डालती है लेकिन उनका किरदार भी जल्दी ही गायब हो जाता है।