India-New Zealand FTA: भारत बना सकता है चीन के व्यापार वर्चस्व को चुनौती, बड़े अवसर सामने

भारत ने अमेरिका द्वारा उच्च शुल्क के दबाव के बीच चीन के साथ अपने तनावपूर्ण व्यापार संबंधों को सुधारने और व्यापार संतुलन स्थापित करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। इसका मुख्य उद्देश्य अमेरिका पर निर्भरता को कम करना और चीन, रूस और अन्य देशों की ओर व्यापार को विविध बनाना है। हालांकि, हाल की रिपोर्टों के अनुसार, इस पहल के बावजूद भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा और बढ़ गया है। चीन से आयात तेजी से बढ़ रहे हैं, जबकि भारतीय निर्यात अपेक्षाकृत कमजोर बने हुए हैं। इस स्थिति से चीन के लिए चिंता बढ़ सकती है क्योंकि भारत अब अपनी व्यापार नीति और रणनीति में बदलाव के माध्यम से नई और महत्वपूर्ण वैश्विक बाज़ारों में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा है।
न्यूज़ीलैंड में अवसर और भारतीय निर्यात की संभावनाएँ
वैश्विक आर्थिक अनुसंधान संस्था, ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के पास चीन की चिंता बढ़ाने और वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती देने का बड़ा अवसर है, विशेषकर न्यूज़ीलैंड जैसे बाज़ार में। 2024-25 में न्यूज़ीलैंड ने लगभग 10 अरब अमेरिकी डॉलर का माल चीन से आयात किया, जबकि भारत से केवल 711 मिलियन डॉलर का माल खरीदा गया, जो कुल आयात बिल लगभग 50 अरब अमेरिकी डॉलर में बहुत कम हिस्सा है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि प्रस्तावित द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के तहत भारतीय निर्यातकों के लिए कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, पेट्रोलियम उत्पाद, औद्योगिक रसायन, दवा और स्वास्थ्य सेवाएँ, वस्त्र और परिधान, इलेक्ट्रॉनिक और विद्युत उपकरण, मोटर वाहन, परिवहन उपकरण, एयरोस्पेस, उच्च मूल्य निर्माण और फर्नीचर जैसे कई क्षेत्रों में मजबूत पकड़ बनाने का अवसर है।
चीन के प्रभुत्व को कमजोर करने का अवसर
GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार, कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां चीनी प्रतिस्पर्धा लगभग नगण्य है, फिर भी भारतीय निर्यात सीमित हैं, केवल 1 लाख से 50 लाख अमेरिकी डॉलर तक। इसका मतलब यह है कि यह बाज़ार किसी स्थापित आपूर्तिकर्ता द्वारा बंद नहीं किया गया है, बल्कि अब तक अप्रयुक्त रहा है। उदाहरण के तौर पर, भारत दुनिया के सबसे बड़े परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादक देशों में से एक है, जिसके वैश्विक निर्यात का मूल्य 69.2 अरब अमेरिकी डॉलर है। वहीं न्यूज़ीलैंड हर साल लगभग 6.1 अरब अमेरिकी डॉलर के पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है, लेकिन भारत का हिस्सा मात्र 2.3 मिलियन डॉलर का है, जबकि चीन से यह आयात 181 मिलियन डॉलर का है। यह स्पष्ट करता है कि भारत के पास चीन की हिस्सेदारी को चुनौती देने और न्यूज़ीलैंड में अपनी पकड़ मजबूत करने की वास्तविक संभावना है।
रणनीति और समर्थन के माध्यम से निर्यात बढ़ाना
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के लिए असली चुनौती यह है कि वह FTA को लक्षित निर्यात संवर्धन, मानक सहयोग, नियामक सरलता और बेहतर लॉजिस्टिक समर्थन के साथ जोड़ें। इससे न्यूज़ीलैंड की चीन पर निर्भरता कम होगी और भारत की वैश्विक व्यापार स्थिति मजबूत होगी। अगर भारत इन अवसरों का प्रभावी ढंग से लाभ उठाता है, तो वह न केवल अपने निर्यात में बढ़ोतरी करेगा बल्कि चीन के प्रभुत्व को चुनौती देने में भी सक्षम होगा। इसके लिए सरकार और व्यापारिक संगठनों को मिलकर रणनीतिक योजना बनानी होगी और भारतीय उत्पादकों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार तैयार करना होगा।
