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रिटेल महंगाई मापने के लिए सरकार लाई नया तरीका, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से डेटा संग्रहित होगा

सरकार ने रिटेल इंफ्लेशन के आंकड़ों में ऑनलाइन स्रोतों और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को शामिल करने का प्रस्ताव रखा है। इसका उद्देश्य कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) की विश्वसनीयता, सटीकता और गुणवत्ता में सुधार करना है। इसके तहत अब केवल भौतिक दुकानों से ही नहीं, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से भी मूल्य डेटा एकत्र किया जाएगा। यह कदम उपभोक्ताओं की बदलती खरीदारी आदतों और आधुनिक वर्चुअल मार्केटिंग के दौर में CPI को अधिक वास्तविक बनाने की दिशा में उठाया गया है।

नए बेस ईयर और डेटा रिलीज़ का शेड्यूल

स्टैटिस्टिक्स और प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन मंत्रालय (MoSPI) CPI, इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) और GDP के बेस ईयर को अपडेट करने की प्रक्रिया में है। नई CPI सीरीज, जिसमें 2024 को बेस ईयर के रूप में लिया गया है, 12 फरवरी 2026 को जारी होने की संभावना है। वहीं, राष्ट्रीय खातों (National Accounts) का डेटा, जिसमें वित्तीय वर्ष 2022-23 को बेस ईयर के रूप में लिया गया है, 27 फरवरी 2026 को प्रकाशित होगा। IIP के लिए नई सीरीज भी 2022-23 बेस ईयर के साथ 28 मई 2026 को जारी की जाएगी। मंगलवार को मंत्रालय ने CPI, GDP और IIP के बेस ईयर संशोधन पर एक कंसल्टेटिव वर्कशॉप का आयोजन भी किया।

ई-कॉमर्स और डिजिटल डेटा स्रोतों का समावेश

CPI में नए डेटा स्रोतों को शामिल करने के संदर्भ में मंत्रालय ने कहा कि 12 चुनी गई शहरों में (जिनकी आबादी 2.5 मिलियन से अधिक है) भौतिक दुकानों के अलावा ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स से मूल्य डेटा भी इकट्ठा किया जाएगा। इसके साथ ही रेलवे टिकटों के लिए रेलवे मंत्रालय, ईंधन कीमतों के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय और डाक सेवाओं के लिए डाक विभाग से प्रशासनिक डेटा प्राप्त करने का प्रयास किया जाएगा। इसके अलावा, एयरफेयर, टेलिकॉम सेवाएं और OTT प्लेटफॉर्म्स के मूल्य डेटा ऑनलाइन माध्यमों से एकत्रित किए जाएंगे। MoSPI के अनुसार, इस तरह के वैकल्पिक और डिजिटल डेटा स्रोतों को अपनाने से CPI की प्रतिनिधित्व क्षमता, सटीकता और विश्वसनीयता में उल्लेखनीय सुधार होगा।

शहरी और ग्रामीण बाजारों पर विस्तारित दृष्टिकोण

मंत्रालय ने न केवल शहरी, बल्कि ग्रामीण बाजारों को भी शामिल करने की योजना बनाई है। इसके तहत ई-कॉमर्स मूल्य डेटा और अन्य डिजिटल स्रोतों को जोड़कर बदलती उपभोक्ता खपत (consumption) की प्रवृत्तियों को और बेहतर ढंग से समझने का प्रयास किया जा रहा है। यह कदम उपभोक्ताओं के वास्तविक जीवन की कीमतों को अधिक सटीक रूप से प्रतिबिंबित करने में मदद करेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, इस नई प्रणाली से नीति निर्माताओं को आर्थिक निर्णय लेने में अधिक भरोसेमंद और विस्तृत डेटा मिलेगा, जिससे नीति निर्माण में पारदर्शिता और प्रभावशीलता बढ़ेगी।

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