Ethanol Industry: तीन राज्यों के फैसले से केंद्र सरकार नाराज़! क्या आम आदमी को भरनी पड़ेगी ज्यादा कीमत?

Ethanol Industry: भारत सरकार ने पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश द्वारा इथेनॉल पर अतिरिक्त शुल्क लगाने को लेकर गंभीर चिंता जताई है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय का कहना है कि इस तरह के फैसले देश के इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे न केवल पेट्रोल महंगा होगा बल्कि पर्यावरणीय लक्ष्य भी पीछे रह जाएंगे। खास बात यह है कि तीनों राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें हैं फिर भी सभी ने केंद्र सरकार की ऊर्जा नीति के उलट निर्णय लिया है।
केंद्र सरकार ने भेजे सख्त पत्र
पेट्रोलियम मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव श्री प्रवीण एम खनुजा ने इन राज्यों के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से पत्र भेजे हैं। हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव प्रभोध सक्सेना को 27 मार्च को पत्र भेजा गया। इसके बाद पंजाब के केएपी सिन्हा को 8 अप्रैल और हरियाणा के अनुराग रस्तोगी को 23 मई को पत्र भेजा गया। पत्रों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इथेनॉल पर लाइसेंस शुल्क बढ़ाने और रजिस्ट्रेशन की शर्तें कड़ी करने से देश की ऊर्जा नीति बाधित हो सकती है।
पेट्रोल की कीमतों पर पड़ेगा असर
केंद्र सरकार का कहना है कि इथेनॉल पर इस तरह के शुल्क लगाने से इसके ट्रांसपोर्टेशन और उत्पादन लागत बढ़ेगी। इसका सीधा असर पेट्रोल की कीमतों पर पड़ेगा क्योंकि पेट्रोल में इथेनॉल की मिलावट एक जरूरी प्रक्रिया है। वर्तमान में यह उत्पाद जीएसटी के दायरे में आता है इसलिए राज्य स्तर पर शुल्क लगाना न केवल नीति बल्कि कानून के दृष्टिकोण से भी विवादास्पद है। इससे केंद्र और राज्यों के बीच कानूनी विवाद की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
इथेनॉल मिशन पर पड़ेगा ब्रेक
भारत सरकार का लक्ष्य है कि साल 2025-26 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिलाया जाए और 2030 तक यह स्तर 30% तक पहुंचाया जाए। पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की सरकारें इस दिशा में अब तक सराहनीय प्रदर्शन कर रही थीं और लगभग 18% मिश्रण तक पहुंच गई थीं। लेकिन नई ड्यूटी से यह गति रुक सकती है। मंत्रालय का कहना है कि पंजाब और हरियाणा देश के केवल दो ऐसे राज्य हैं जिन्होंने विशेष रूप से इथेनॉल मिश्रण पर यह शुल्क लगाया है।
उद्योग जगत भी कर रहा विरोध
ग्रेन इथेनॉल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन जैसे संगठनों ने भी केंद्र सरकार के रुख का समर्थन किया है। उनका कहना है कि कच्चे माल की लागत पहले ही बढ़ चुकी है और तेल कंपनियों द्वारा निर्धारित बिक्री मूल्य में कोई बढ़ोतरी नहीं की जा रही है। ऐसे में राज्य स्तर पर नया शुल्क लगने से उत्पाद लागत बढ़ेगी और रोजगार पर भी असर पड़ेगा। केंद्र सरकार ने राज्यों से अपील की है कि वे यह नई नीति वापस लें ताकि स्वच्छ ऊर्जा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती रहे।