टैक्स रिटर्न रिफंड में गिरावट और कंपनियों का बढ़ता एडवांस टैक्स, 10.82 लाख करोड़ की कमाई

वित्त वर्ष 2025-26 के पहले छह महीनों में सरकार की नेट डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन ने ₹10.82 लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है। व्यक्तिगत आयकर और कॉर्पोरेट टैक्स में वृद्धि के कारण कर संग्रह मजबूत हुआ है। कंपनियों से अग्रिम कर संग्रह (Advance Tax) बढ़ने और रिफंड धीमी गति से जारी होने के कारण यह स्थिति बनी है। अप्रैल 1 से सितंबर 17 तक रिफंड में 24 प्रतिशत की कमी हुई और यह ₹1.61 लाख करोड़ पर आया। वहीं, कंपनियों से अग्रिम कर संग्रह 6.11 प्रतिशत बढ़कर ₹3.52 लाख करोड़ हो गया।
कॉर्पोरेट और नॉन-कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह
कॉर्पोरेट कर संग्रह इस अवधि में ₹4.72 लाख करोड़ तक पहुंच गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष के समान अवधि में यह ₹4.50 लाख करोड़ था। वहीं, नॉन-कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह अब तक लगभग ₹5.84 लाख करोड़ हो चुका है, जो पिछले वर्ष के ₹5.13 लाख करोड़ से अधिक है। नॉन-कॉर्पोरेट टैक्स में व्यक्तिगत आयकर और हिंदू अविभाजित परिवारों (HUFs) का कर शामिल है। इससे यह स्पष्ट होता है कि व्यक्तिगत करदाताओं और छोटे कारोबारों से भी सरकार को अच्छा राजस्व प्राप्त हो रहा है।

STT और कुल कर संग्रह
सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (STT) संग्रह ₹26,306 करोड़ रहा, जो पिछले वर्ष के समान अवधि के ₹26,154 करोड़ से थोड़ा अधिक है। कुल नेट डायरेक्ट टैक्स संग्रह 9.18 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ ₹10.82 लाख करोड़ तक पहुंच गया, जबकि पिछले वर्ष यह ₹9.91 लाख करोड़ था। वहीं, ग्रॉस डायरेक्ट टैक्स संग्रह ₹12.43 लाख करोड़ रहा, जिसमें 3.39 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई। यह संकेत देता है कि देश में कर संग्रह स्थिर और बढ़ती मांग के अनुरूप है।
सरकार का लक्ष्य और वित्त मंत्री की टिप्पणी
सरकार ने इस वित्त वर्ष के लिए डायरेक्ट टैक्स संग्रह का लक्ष्य ₹25.20 लाख करोड़ रखा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 12.7 प्रतिशत अधिक है। वहीं, STT से ₹78,000 करोड़ संग्रह करने का लक्ष्य रखा गया है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि हाल ही में लागू जीएसटी सुधारों से अर्थव्यवस्था में ₹2 लाख करोड़ का प्रवाह होगा और सभी क्षेत्रों में मांग को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि जीएसटी में दरों में कटौती का निर्णय राज्यों की सहयोगात्मक भावना के कारण संभव हुआ। यदि राजस्व घटता है, तो केंद्रीय सरकार वही भार उठाती है, जिससे राज्यों और केंद्र के बीच कोई “गिव-एंड-टेक” मॉडल नहीं है।
