अरावली पर छिड़ी बहस के बीच केंद्र का बड़ा बयान, भूपेंद्र यादव बोले- कोई छूट नहीं मिलेगी

देशभर में इन दिनों अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर लगातार चर्चा और विवाद का माहौल बना हुआ है। इस बीच केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने अरावली को लेकर फैली भ्रांतियों पर साफ शब्दों में स्थिति स्पष्ट की है। उन्होंने कहा कि अरावली क्षेत्र में न तो कोई छूट दी गई है और न ही भविष्य में दी जाएगी। एक समाचार एजेंसी को दिए इंटरव्यू में मंत्री ने कहा कि अरावली दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और सरकार इसे हरा-भरा और सुरक्षित बनाए रखने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस पूरे मुद्दे को राजनीतिक या गलत सूचनाओं के जरिए भ्रमित किया जा रहा है, जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है।
90 प्रतिशत अरावली क्षेत्र रहेगा पूरी तरह संरक्षित
भूपेंद्र यादव ने अरावली की परिभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए बताया कि भूवैज्ञानिकों द्वारा मान्य एक वैज्ञानिक परिभाषा के अनुसार, 100 मीटर ऊंचाई वाला भूभाग पर्वत माना जाता है। इसका मतलब सिर्फ ऊंचाई नहीं, बल्कि पर्वत की चोटी से लेकर उसके स्थायी आधार तक पूरा क्षेत्र संरक्षित माना जाएगा। उन्होंने कहा कि इस परिभाषा के लागू होने के बाद अरावली क्षेत्र का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा पूरी तरह संरक्षित रहेगा, जहां किसी भी तरह की खनन या निर्माण गतिविधि संभव नहीं होगी। उन्होंने यह भी बताया कि अरावली क्षेत्र का करीब 58 प्रतिशत हिस्सा कृषि भूमि है, जबकि शेष हिस्से में गांव, शहर और बस्तियां पहले से मौजूद हैं। इसके अलावा लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्र पहले से ही संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जहां किसी भी तरह की गतिविधि पूरी तरह प्रतिबंधित है।
खनन पर सख्त नियम और वैज्ञानिक योजना अनिवार्य
केंद्रीय मंत्री ने खनन को लेकर फैल रही आशंकाओं पर भी खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, अरावली क्षेत्र में किसी भी नए खनन से पहले एक विस्तृत वैज्ञानिक योजना तैयार की जाएगी। इस योजना में इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE) की अहम भूमिका होगी। उन्होंने साफ कहा कि पूरी अरावली क्षेत्र में 0.19 प्रतिशत से ज्यादा इलाके में खनन संभव ही नहीं होगा, और औसतन यह आंकड़ा 0.1 प्रतिशत से भी कम रह सकता है। भूपेंद्र यादव ने यह भी स्वीकार किया कि पहले अरावली में अवैध और अनियंत्रित खनन हो रहा था, लेकिन अब स्पष्ट परिभाषा और प्रतिबंधित क्षेत्रों के निर्धारण के बाद अवैध खनन को पूरी तरह रोका जाएगा। राज्य सरकारों को भी निर्देश दिए जाएंगे कि वे सख्त नियम बनाकर उनका कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें।
सिर्फ पेड़ नहीं, पूरी पारिस्थितिकी का संरक्षण जरूरी
अरावली संरक्षण को लेकर मंत्री ने कहा कि केवल पेड़ लगाना ही समाधान नहीं है। अरावली की पारिस्थितिकी में घास, झाड़ियां, औषधीय पौधे और वन्यजीव सभी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि ग्रीन अरावली वॉल मूवमेंट के तहत अब तक 29 से अधिक नर्सरियां स्थापित की जा चुकी हैं और इन्हें हर जिले तक फैलाने की योजना है। हर जिले की स्थानीय वनस्पति का अध्ययन किया गया है ताकि उसी के अनुरूप पौधरोपण और संरक्षण किया जा सके। उन्होंने इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस का जिक्र करते हुए कहा कि बाघ या बड़े वन्यजीव तभी सुरक्षित रह सकते हैं, जब उनका पूरा इकोसिस्टम सुरक्षित हो। अंत में मंत्री ने दो टूक कहा कि अरावली क्षेत्र में शहरीकरण का कोई एजेंडा नहीं है। यह योजना पूरी तरह अरावली के संरक्षण के लिए है और कोर्ट के हर निर्देश का सख्ती से पालन किया जाएगा, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला को सुरक्षित रखा जा सके।